न खेत बराबर- न पैदावार.. अमेरिका से व्यापार समझौते में भारत डेयरी, कृषि आयात के मोर्चे पर क्यों नहीं झुक रहा

India-US Trade Deal: भारत अमेरिका व्यापार समझौते पर पहुंचने के बीच में सबसे बड़ा रोड़ा माना जा रहा कि अमेरिका भारत के अंदर अपने डेयरी और कृषि उत्पादों पर लगने वाले टैरिफ पर रियायत मांग रहा है और इस मुद्दे पर भारत असहमत है. जानिए क्यों.

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते यानी ट्रेड डील के लिए वार्ता तेजी से चल रही है. पूरे संकेत हैं कि दोनों देशों के बीच जल्द ही एक अंतरिम व्यापार समझौते पर साइन होने जा रहा है. दोनों देशों की कोशिश है कि 9 जुलाई के पहले इसे फाइनल कर लिया जाए क्योंकि अगर इस दिन तक डील नहीं हुई तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत से अमेरिका में आने वाले सामानों पर हाई टैरिफ लगाना शुरू कर सकते हैं. हालांकि किसी व्यापार समझौते पर पहुंचने के बीच में सबसे बड़ा रोड़ा माना जा रहा कि अमेरिका भारत के अंदर अपने डेयरी और कृषि उत्पादों पर लगने वाले टैरिफ पर रियायत मांग रहा है और इस मुद्दे पर भारत असहमत है. सवाल है कि भारत के लिए कृषि उत्पादों का आयात संवेदनशील मुद्दा क्यों है? चलिए आपको इस एक्सप्लेनर में आसान भाषा में समझाते हैं.

भारत के लिए कृषि आयात संवेदनशील मुद्दा क्यों?

भारत की 3.9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान केवल 16% है, लेकिन वे देश की 140 करोड़ की आबादी के लगभग आधे हिस्से का भरण-पोषण करते हैं. यानी देश की लगभग आधी जनता अपनी कमाई के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है. किसान सबसे शक्तिशाली वोट समूह भी है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को चार साल पहले 3 विवादास्पद कृषि कानूनों के मुद्दे पर अपने कदम पीछे हटाने पड़े थे. अमेरिका से बात करते समय मोदी सरकार किसानों के हितों को आगे रख रही है. अगर अमेरिका के कृषि उत्पाद भारत के अंदर कम टैरिफ के साथ आते हैं तो भारतीय किसानों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

अमेरिका से सस्ते आयात की संभावना से स्थानीय कीमतों में गिरावट का खतरा है. इससे न सिर्फ भारतीय किसानों को नुकसान होगा बल्कि विपक्ष को सरकार पर हमला करने का एक नया मौका मिल जाएगा. भारत ने परंपरागत रूप से कृषि को अन्य देशों के साथ किए गए मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर रखा है. अगर अमेरिका को भारत अपने कृषि बाजार तक पहुंच प्रदान करता है तो भारत को अन्य व्यापारिक साझेदारों को भी उसी तरह की रियायतें देने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

भारत और अमेरिका की किसानी क्यों अलग है?

अमेरिका में एक किसान के पास औसत खेत 187 हेक्टेयर है जबकि भारत के किसान के पास केवल 1.08 हेक्टेयर खेत है. डेयरी में बात करें तो अमेरिका में एक किसान जहां औसतन सैकड़ों जानवर रखता है तो भारत में प्रति किसान औसतन दो से तीन जानवर ही हैं.

यही अंतर छोटे भारतीय किसानों के लिए अमेरिकी किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा करना कठिन बना देता है.

भारत में खेती बड़े पैमाने पर गैर-मशीनीकृत बनी हुई है क्योंकि यहां किसान की खेती की जमीन छोटी है और एक साथ नहीं है. यह खंडित खेती की जमीन बड़ी मशीनरी के लिए बहुत कम जगह छोड़ती है. कई क्षेत्रों में, किसान पीढ़ियों से चली आ रही तकनीकों पर भरोसा करते हैं, जो अमेरिकी खेतों के बिल्कुल विपरीत है, जहां अत्याधुनिक उपकरणों और AI से चलने वाली टेक्नोलॉजी ने उत्पादकता बढ़ाई है.

अमेरिका किन कृषि उत्पादों को भारत में लाना चाह रहा? भारत विरोध क्यों कर रहा है?

अमेरिका अपनी डेयरी, पोल्ट्री, मक्का, सोयाबीन, चावल, गेहूं, इथेनॉल, खट्टे फल, बादाम, पेकान, सेब, अंगूर, डिब्बाबंद आड़ू, चॉकलेट, कुकीज और फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज सहित अमेरिकी उत्पादों की एक लंबी लिस्ट के लिए भारत पर दबाव डाल रहा है कि वह अपने बाजार को इनके लिए खोले. दूसरी तरफ भारत अमेरिका के सूखे मेवों और सेबों को भारत के अंदर अधिक पहुंच देने को तैयार है लेकिन वह मक्का, सोयाबीन, गेहूं और डेयरी उत्पादों के आयात की अनुमति को तैयार नहीं है.

भारत अपने देश के अंदर आनुवंशिक रूप से संशोधित (जेनेटिक रूप से मॉडिफाई- GM) खाद्य फसलों की अनुमति नहीं देता है, जबकि अधिकांश अमेरिकी मक्का और सोयाबीन का उत्पादन जेनेटिक रूप से मॉडिफाई ही है.

भारत में डेयरी एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है, जहां सांस्कृतिक और आहार संबंधी प्राथमिकताएं भोजन विकल्पों को दृढ़ता से प्रभावित करती हैं. भारतीय उपभोक्ता विशेष रूप से चिंतित हैं कि अमेरिका में मवेशियों को अक्सर जानवरों का ही बाईप्रोडक्ट किसी रूप में खिलाया जाता है, यह एक ऐसी प्रथा है जो भारतीय भोजन की आदतों के साथ टकराव करती है, उसके खिलाफ जाती है.

भारत गैसोलीन में अमेरिकी इथेनॉल के मिश्रण का विरोध क्यों करता है?

भारत के इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम का एक मुख्य उद्देश्य घरेलू स्तर पर उत्पादित इथेनॉल को गैसोलीन के साथ मिलाकर ऊर्जा आयात पर निर्भरता में कटौती करना है. घरेलू कंपनियों ने बड़े स्तर पर इसमें निवेश किया है जिसके कारण भारत अब 20% इथेनॉल मिश्रण के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के करीब है. लेकिन अगर अमेरिका से इथेनॉल का आयात होने लगा तो यह कदम उन भारतीय कंपनियों को कमजोर कर देगा.

इतना ही नहीं EBP चावल, गन्ना और मकई के अधिशेष (पराली) को इथेनॉल उत्पादन में बदलकर मैनेज करने में भी मदद करता है. अमेरिकी इथेनॉल के आयात की अनुमति भारत के उभरते डिस्टिलरी क्षेत्र के लिए एक गंभीर झटका होगा.

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