बच्चों को रोटी नहीं-आर्मी को ड्रोन! पाकिस्तान में रक्षा बजट को 18% बढ़ाने का फैसला क्या बता रहा?

Pakistan Defence Budget: पाकिस्तान ने इस साल के अपने बजट में रक्षा खर्च को 18% बढ़ाकर 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक करने का फैसला किया है. जानिए इसने इस मुल्क की वित्तीय प्राथमिकताओं पर नई बहस क्यों छेड़ दी है.

Pakistan Defence Budget: पाकिस्तान में हॉस्पिटल और स्कूल पर खर्च हो या न हो, उसे गोला-बारूद में पैसा लगाने अच्छे से आता है. अब पाकिस्तान ने इस साल के अपने बजट में रक्षा खर्च को 18% बढ़ाकर 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक करने का फैसला किया है. जब पाकिस्तान नकदी संकट से जूझ रहा है, आर्थिक संकट गहरा गया है और महंगाई दर 38% से अधिक हो गई है, तब रक्षा बजट को 18% बनाने के फैसले ने इस देश की वित्तीय प्राथमिकताओं पर नई बहस छेड़ दी है.

22 अप्रैल को भारत के पहलगाम में हुए हिंसक और कायराना आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी. उसमें पाकिस्तान का हाथ सामने आया तो भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर उसे जवाब दिया. दोनों देशों के बीच स्थिति लगभग एक्टिव वॉर तक पहुंच गई थी. सीजफायर ने इसे भले आगे बढ़ने से रोका लेकिन भारत के साथ बढ़ते तनाव को देखते हुए पाकिस्तान अपनी सेना पर और अधिक खर्च कर रहा है. हालांकि आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इससे आर्थिक सुधारों के पटरी से उतरने और पाकिस्तान सरकार की तरफ से होने वाले  सामाजिक खर्च के कम होने का खतरा है.

किताब नहीं राइफल पर जोर देता पाकिस्तान- आंकड़े चौंकाते हैं

पाकिस्तान के लिए आर्थिक कठिनाइयां स्थायी समस्या बन चुकी हैं और विश्व स्तर पर सब अच्छी तरह यह बात जानते हैं. हाल के सालों में, पाकिस्तान ने महंगाई के खतरनाक स्तर, विदेशी मुद्रा भंडार में चल रहे संकट और भारी कर्ज के बोझ का अनुभव किया है. इन मुद्दों के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ी है, गरीबी बढ़ी है और आबादी के लिए हर रोज की कठिनाइयां पैदा हुई हैं. यह उस समय हो रहा है जब पाकिस्तान पहले से ही बार-बार होने वाली आतंकवादी हिंसा और जाहिरा तौर पर इसका मुकाबला करने के उद्देश्य से चलाए जाने वाले सैन्य अभियानों की चपेट में है.

खराब होती इकनॉमी और लोन के लिए IMF की शर्तों के बावजूद पाकिस्तान ने अपनी आबादी के अनुपात से कहीं बड़ी सेना बनाकर रखी है और उसपर उसका खर्च कम होने की जगह बढ़ रहा है. धीरे-धीरे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में पाकिस्तान की मिलिट्री अपना हिस्सा बढ़ा रही है.

पाकिस्तान के घरेलू मामलों में सेना की व्यापक भूमिका राजनीति और विदेश नीति से परे, आर्थिक क्षेत्र में भी अहम है. इसे आप पाकिस्तान सेना के बजट से समझिए. वित्त वर्ष 2025 के लिए पाकिस्तान का रक्षा खर्च उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.3 प्रतिशत था, जो भारत, चीन और यूरोपीय यूनियन द्वार खर्च किए जाने वाले हिस्से (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में) से अधिक है.

एक प्रमुख बिजनेस पोर्टल की स्टडी के अनुसार, पाकिस्तान के रक्षा बजट में वित्त वर्ष 2017 और वित्त वर्ष 2025 के बीच 12.6 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर (एनुअल ग्रोथ रेट) देखी गई. वहीं दूसरी तरफ इस बीच भारत में यह वार्षिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत थी. 

आपने पाकिस्तान द्वारा राइफल पर होने वाले खर्च को देखा, अब किताब और दवाई पर होने वाले खर्च को भी देखिए. पाकिस्तान में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को GDP का क्रमशः 2 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत आवंटित किया गया था.

गर्दन तक कर्ज में डूबा पाकिस्तान

चीन से लेकर सऊदी-UAE और इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) तक पाकिस्तान लोन मांगकर लाता है और अपना काम चलाता है. देश की स्थिति इस मामले में बेहद गंभीर है. IMF के आंकड़े के अनुसार पाकिस्तान का लोन-से-जीडीपी अनुपात 73.6% के करीब है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार साल 2024 में 25 अरब डॉलर के व्यापार घाटे और बमुश्किल तीन महीनों के आयात के लायक फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व के साथ, राजकोषीय स्थिति तंग बनी हुई है. पाकिस्तान को IMF से जो बेलआउट (इसे ऐसे समझे कि गंभीर मुश्किल से निकलने के लिए मिला लोन हो) के लिए जो 7 अरब डॉलर मिले हैं वो भी सख्त राजकोषीय नियंत्रण की शर्त पर मिले हैं. 

पाकिस्तान में सेना चलाती है अपना बिजनेस

पाकिस्तान में सेना ने एक व्यापक निजी समूह विकसित किया है, जिसे आमतौर पर ‘मिलबस’ (मिलिट्री बिजनेस) के रूप में जाना जाता है. यह शब्द जाने-माने विद्वान आयशा सिद्दीका ने अपनी स्टडी- मिलिट्री इंक: इनसाइड पाकिस्तान्स मिलिट्री इकोनॉमी में दिया था.

फौजी फाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, शाहीन फाउंडेशन, बहरिया फाउंडेशन और अत्यधिक विवादास्पद डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी (डीएचए) सहित वाणिज्यिक उद्यमों के एक नेटवर्क के माध्यम से, पाकिस्तान सेना ने खुद को रियल एस्टेट, बैंकिंग, विनिर्माण, कृषि, शिपिंग, शिक्षा और मीडिया जैसे कई क्षेत्रों में शामिल कर लिया है. कुछ अनुमान बताते हैं कि सेना देश की लगभग 12 प्रतिशत भूमि पर नियंत्रण रखती है.

आरोप है कि पाकिस्तान सेना के ये उद्योग स्थानीय प्रतिस्पर्धा और निजी उद्यम को दबाते हैं, जबकि सरकार से उनको टैक्स में रियायतें मिलती हैं और जांच भी न्यूनतम होती है. यह सर्वमान्य तथ्य है कि पाकिस्तान में सेना ही सबसे शक्तिशाली संस्था बनी हुई है. उसने लगभग तीन दशकों तक पाकिस्तान पर सीधे शासन किया है और जब जनता का चुना नेता भी सरकार चलाता है तो दौरान पर्दे के पीछे से असली कंट्रोल सेना के हाथ में ही होता है.

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