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लैंडस्‍लाइड, फ्लैश फ्लड, सैलाब, तबाही… उत्तरकाशी की 10 दर्द भरी आपदाएं, ज्‍यादातर अगस्‍त में ही क्‍यों?

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3-6 अगस्त, 2012 को उसरी गंगा और भगीरथी नदी में बाढ़ आने से 35 लोगों की मौत हो गई थी, जबक‍ि 2300 से ज्‍यादा परिवार प्रभावित हुए थे. इसमें फंसे 162 यात्रियों को हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया था. एक महीने तक गंगोत्री हाईवे बंद रहा था. 

उत्तरकाशी प्राकृतिक आपदाएं हर साल लोगों की जान लेती हैं। विशेष रूप से अगस्त में, यह इलाका लैंडस्लाइड, फ्लैश फ्लड और भारी बारिश से सबसे ज़्यादा प्रभावित होता है।

उत्तरकाशी:

खिरो गार्ड, धराली, हर्षिल, बड़कोट, केदारगांव, स्वलाड़, माटलाड़ी, कर्बारी… उत्तरकाशी के ये गांव 1835 से ही प्राकृतिक आपदाएं झेल रहे हैं. उत्तरकाशी का धराली कस्बा, जो खिरो गार्ड नाले के ठीक मार्ग पर बसा था, एक बार फिर प्रकृति के प्रकोप का शिकार हो गया. धराली की खीरगंगा में आया पानी और मलबे का विनाशकारी सैलाब कुछ क्षणों में ही बड़े-बड़े होटलों और मकानों को अपने साथ बहा ले गया. गंगोत्री धाम के रास्ते में स्थित ये खूबसूरत इलाका पलक झपकते ही मलबे के ढेर के नीचे दब गया. 

धराली गंगोत्री धाम से करीब 20 किलोमीटर पहले पड़ता है और यात्रा का प्रमुख पड़ाव है. मंगलवार की घटना में लापता हुए लोगों की संख्या के बारे में आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं मिली है लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक, 50 से ज्‍यादा लोगों के बहने की आशंका है. कारण कि बाढ़ के पानी के तेज बहाव के कारण लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचने का मौका ही नहीं मिला. 

इस भीषण तबाही ने 2013 की केदारनाथ और 2021 की ऋषिगंगा आपदा की भयावह यादें ताजा कर दीं. केदारनाथ और ऋषिगंगा में फ्लैश फ्लड से ऐसी ही तबाही आई थी. उत्तरकाशी ऐसी कई आपदाएं झेल चुका है. 

1835 से अब तक कई आपदाएं

उत्तरकाशी का पूरा इलाका दशकों से प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता रहा है. साल 1835 में खिरो गार्ड में बड़ा फ्लैश फ्लड आया था, जब बहते पानी और मलबे ने भयंकर तबाही मचाई थी. 1980 के दशक में भी मलबे में दबा प्राचीन मंदिर मिला था. 2013 के केदारनाथ आपदा को भला कौन भूल सकता है. खिरो गार्ड और अन्य नालों में भी तबाही से कई बस्तियां बह गई थीं. नीचे कुछ बड़ी आपदाओं के बारे में जानते हैं. 

ताश के पत्तों की तरह ढह गईं इमारतें 

धराली की घटना को लेकर अधिकारियों ने बताया कि बाढ़ के पानी और मलबे के तेज बहाव में तीन-चार मंजिला मकानों सहित आस-पास की इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढह गईं. अधिकारियों के अनुसार, खीर गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में बादल फटने से यह विनाशकारी बाढ़ आई. 

बाढ़ से केवल धराली ही नहीं प्रभावित हुआ. राज्य आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि तेज गति से आया सैलाब एक ही पहाड़ी की दो अलग-अलग दिशाओं में बहा-एक धराली की ओर दूसरा सुक्की गांव की ओर. इसके अलावा, राज्यभर में भूस्खलन के कारण सड़कों के अवरुद्ध होने से भी राहत कार्य में अड़चनें आईं और बचावकर्मियों को आपदाग्रस्त क्षेत्र में पहुंचने में कठिनाई हुई. 

ज्‍यादातर आपदाएं जुलाई-अगस्‍त में ही क्‍यों?

उत्तरकाशी में बादल फटने, फ्लैश फ्लड जैसी ज्‍यादातर आपदाएं जुलाई-अगस्‍त में ही आती रही हैं, जिसके पीछे के कारण मौसम और भौगोलिक स्थिति से जुड़े हैं. इन दिनों मॉनसून का प्रभाव पूरी तरह सक्रिय रहता है, जिसके चलते भारी बारिश होती है. उत्तरकाशी जैसे संकरे घाटी वाले क्षेत्र में भारी बारिश के दौरान जलस्तर भी तेज गति से बढ़ जाता है और भूस्खलन, मलबा, पानी का तेज बहाव आदि से बाढ़ (फ्लैश फ्लड) का खतरा बहुत अधिक रहता है. 

संकरी घाटियों में ऐसा तेज पानी और मलबा तेजी से नीचे आता है, जिससे अचानक तबाही होती है. धराली गांव में बादल फटने के कारण आई आपदा के मामले में बताया गया है कि ऊपर के क्षेत्र में ग्लेशियर पिघलने और भारी बारिश से जमा हुआ मलबा अचानक पानी के साथ नीचे बह निकला. बहते पानी की रफ्तार लगभग 15 मीटर/सेकेंड थी और मलबे के दबाव से 250 किलोपास्कल का प्रेशर पड़ा, जिससे रास्‍ते में आने वाले मकान, होटल, इमारतें टिक नहीं पाईं.

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