क्या है भारत का कावेरी प्रोजेक्ट, जिससे उड़ेगी चीन और पाकिस्तान की नींद; क्यों नहीं दुश्मनों की खैर?

भारत की प्रमुख रक्षा अनुसंधान एजेंसी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) रूस में स्वदेशी रूप से विकसित कावेरी जेट इंजन का परीक्षण कर रही है.

नई दिल्ली:

ऑपरेशन सिंदूर में मौजूदा दौर की सबसे घातक हवाई लड़ाई हुई, जिसकी पूरी दुनिया में चर्चा है. एक तरफ भारतीय एयरफोर्स के राफेल, सुखोई फाइटर जेट्स थे तो दूसरी तरफ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के एफ-16 और जे-17. मौजूदा दौर की सबसे भयंकर इस लड़ाई में ताकत, फायर पावर का प्रदर्शन करने वाले मॉर्डन जेट्स का सबसे अहम हिस्सा होते हैं इनके इंजन. जो कि बेहद शक्तिशाली होते हैं. ये दमदार इंजन ही फाइटर जेट्स को इतना शक्तिशाली बनाते हैं कि वो पल झपकते ही आसमान में तारा बन जाते हैं. भारत भी लंबे समय से मेड इन इंडिया जेट्स के लिए खुद का इंजन बनाने की मशक्कत में लगा है और इसी प्रोजेक्ट का नाम है कावेरी. कावेरी प्रोजेक्ट के सफल होते ही पाकिस्तान तो छोड़िए यहां तक कि चीन की भी नींद उड़ जाएगी.

क्या है इंडिया का कावेरी प्रोजेक्ट

कावेरी इंजन भारत का एक स्वदेशी टर्बोफैन जेट इंजन है, जिसे गैस टर्बाइन रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट (GTRE) द्वारा डीआरडीओ (DRDO) के तहत विकसित किया जा रहा है. इसकी शुरुआत 1980 के दशक के अंत में हुई थी, और इसका मुख्य उद्देश्य स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस को शक्ति देना था. भारत का ये महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट देश के डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह तकनीकी और राजनैतिक चुनौतियों के कारण चर्चा में बनी हुई है. अब बड़े लंबे बाद इससे जुड़ी एक अच्छी खबर आ रही है.

DRDO के अनुसार, यह एक लो-बाईपास ट्विन-स्पूल टर्बोफैन इंजन है, जिसे लगभग 80 kN का थ्रस्ट हासिल करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिसका मकसद शुरू में लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस को शक्ति प्रदान करना था. कावेरी इंजन में हाई टेंपरेचर और हाई स्पीड की स्थितियों में थ्रस्ट लॉस को कम करने के लिए एक फ्लैट-रेटेड डिजाइन किया गया है. इसकी ट्विन-लेन फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल (FADEC) प्रणाली अतिरिक्त विश्वसनीयता के लिए मैन्युअल बैकअप के साथ सटीक कंट्रोल सुनिश्चित करती है. यह डिजाइन इंजन को कई परिचालन स्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करने के सक्षम बनाती है.

फंड कावेरी इंजन ट्रेंड का क्या मकसद?

1980 के दशक में शुरू की गई इस परियोजना का उद्देश्य अपने लड़ाकू विमानों के लिए विदेशी इंजनों पर भारत की निर्भरता को कम करना था, लेकिन भारत के 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद प्रतिबंधों के कारण थ्रस्ट की कमी, वजन संबंधी मुद्दों और देरी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. 2008 में तेजस कार्यक्रम से इसे अलग कर दिया गया था, लेकिन अब घातक स्टेल्थ यूसीएवी जैसे मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) के लिए इसे विकसित किया जा रहा है, जिसमें उड़ान के दौरान परीक्षण में हाल ही में प्रगति हुई है.

रूस में हो रही कावेरी इंजन की टेस्टिंग

डीआरडीओ रूस में स्वदेशी रूप से विकसित कावेरी जेट इंजन का परीक्षण कर रही है और इसका उपयोग भारत में निर्मित लंबी दूरी के मानवरहित लड़ाकू विमान को शक्ति प्रदान करने के लिए करने की योजना बना रही है. फिलहाल कावेरी का रूस में परीक्षण चल रहा है और वहां इस पर लगभग 25 घंटे का परीक्षण किया जाना बाकी है. रक्षा अधिकारियों ने एएनआई को बताया कि स्लॉट वहां के अधिकारियों द्वारा दिए जाने हैं. उन्होंने कहा कि इंजन का उपयोग स्वदेशी यूसीएवी परियोजना को शक्ति प्रदान करने के लिए करने की योजना है. 

सोशल मीडिया पर कावेरी की क्यों इतनी चर्चा

सोशल मीडिया पर भी #फंडकावेरी इंजन ट्रेंड चल रहा है. कावेरी इंजन को स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए डीआरडीओ द्वारा विकसित करने की योजना थी, लेकिन कार्यक्रम में देरी के कारण, लड़ाकू विमान को अमेरिकी जीई-404 इंजन द्वारा संचालित किया जाना था. जीई-404 का इस्तेमाल 32 एलसीए मार्क 1 और ट्विन सीटर ट्रेनर वर्जन को पावर देने के लिए किया गया है. 83 एलसीए मार्क 1ए को भी जीई-404 से पावर दिया जाना है, लेकिन अमेरिकी फर्म द्वारा सप्लाई दिक्कतों के चलते योजना में देरी हुई है. यह पूछे जाने पर कि क्या कावेरी इंजन का इस्तेमाल अभी भी एलसीए को पावर देने के लिए किया जा सकता है.

इस पर अधिकारियों ने कहा कि कावेरी को एलसीए विमानों में से एक पर लगाने और इसकी क्षमताओं का प्रदर्शन करने की योजना है. डीआरडीओ पांचवीं पीढ़ी के एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के मार्क 2 वर्जन सहित भविष्य के विमानों के लिए अधिक शक्तिशाली इंजन के विकास के लिए एक विदेशी फर्म के साथ काम करने की दिशा में भी काम कर रहा है. भारत फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका की फर्मों सहित कई फर्मों के साथ बातचीत कर रहा है. इस संबंध में फैसला भविष्य में लिए जाने की उम्मीद है. लड़ाकू विमानों के लिए भारतीय स्वदेशी कार्यक्रमों की योजना आयात में कटौती करने और भारतीय वायु सेना के लिए स्वदेशी प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई है. स्वदेशी लड़ाकू जेट कार्यक्रमों में एलसीए मार्क 1ए, एलसीए मार्क 2 और एएमसीए शामिल हैं.

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